मंगलवार, 2 जुलाई 2013

भड्डरी की कहावतें -4

बिना तिलक का पाँडिया,
बिना पुरुष की नार।
बायें भले न दायें,
सीन्याँ सर्प सुनार।।
यात्रा के समय बिना तिलक का पंडित, विधवा स्त्री, दर्ज़ी, साँप  और सुनार न दाहिने अच्छे हैं न बायें।
पवन बाजै पूरियो।
हाली हलावकीम पूरियो।।
यदि उत्तर-पश्चिम की हवा चले, तो किसान को नई ज़मीन में हल नहीं चलाना चाहिए। क्योंकि वर्षा जल्दी ही आने वाली है।

सोमवार, 20 मई 2013

भड्डरी की कहावतें-3

तीतर बरनी बादरी
बिधवा काजर रेख |
वे बरसैं वे घर करें
कहें भड्डरी देख ||


तीतर के पंख की तरह बदली हो और विधवा की आँखों में काजल की रेखा हो तो भड्डरी कहते हैं कि बदली बरसेगी और विधवा दूसरा घर करेगी |

पुरबा बादर पच्छिम जाए
वासे वृष्टि अधिक बरसाए |
जो पच्छिम से पूरब जाए
वर्षा बहुत न्यून हो जाए ||

पूर्व दिशा से यदि बादल पश्चिम की ओर जा रहे हों तो वर्षा अधिक होगी | यदि पश्चिम से बादल पूर्व की ओर जा रहे हों तो वर्षा बहुत ही कम होगी |

रात निर्मली दिन को छाहीं|
कहैं भड्डरी पानी नाहीं ||


रात निर्मल हो और दिन में बादलों की छाया दिखाई दे तो भड्डरी कहते हैं कि अब वर्षा नहीं होगी |

उतरे जेठ जो बोलें दादर |
कहैं भड्डरी बरसैं बादर ||

यदि जेठ उतारते ही मेढक बोलने लगें तो वर्षा जल्दी होगी |

शनिवार, 18 मई 2013

घाघ की कहावतें-3




ओछो मंत्री राजै नासै
 ताल बिनासे काई |
सान साहिबी फूट बिनासे
 घग्घा पैर बिवाई ||

घाघ कहते हैं कि नीच प्रकृति का मंत्री राजा का, काई तालाब का, फूट मानमर्यादा का और बिवाई पैर का नाश करती है |

आठ कठौती माँठा पीवै 
 सोरह मकुनी खाई |
उसके मरे न रोइए
 घर क दलिद्दर जाई ||

जो आठ कठौत (काठ की परात) भर कर मट्ठा पीता हो और सोलह मकुनी (सत्तू भरी हुई रोटी) खाता हो, उसके मरने पर रोने की ज़रुरत नहीं | वह तो मानो घर का दरिद्र गया |(यह कहावत अत्यधिक भोजन करने वालों पर कटाक्ष है )

आठ गाँव का चौधरी
 बारह गाँव का राव |
अपने काम न आय तौ 
 अपनी ऐसी-तैसी में जाव ||

कोई कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यूँ ना हो अगर वो अपने किसी काम नहीं आता हो उस से क्या लेना देना है |

चोर जुवार गांठकठा
 जार औ नार छिनार |
सौ सौगंधें खायें जौ
 घाघ न करू इतबार ||

घाघ कहते हैं कि चोर, जुआरी, गिरहकट,जार और छिनाल स्त्री, ये सौ सौगंधें खाएं, तब भी इनका विश्वास नहीं करना चाहिए |

गुरुवार, 16 मई 2013

भड्डरी की कहावतें-2




आभा राता |
मेह माता ||

आकाश लाल हो तो वर्षा बहुत होती है |


आभा पीला |
मेह सीला ||

आकाश पीला हो तो वर्षा कम होती है |

मंगल सोम होए सिवराती |
पछियाँ बाय बहे दिन राती ||
घोडा रोड़ा टिड्डी उडें |
राजा मरें कि पार्टी पड़ें ||

यदि शिवरात्री मंगल या सोमवार को पड़े और रातदिन पश्चिम की हवा बहे, तो समझना चाहिए कि घोडा (एक प्रकार का पतिंगा), रोड़ा और टिड्डी उडेंगी; तथा राज की मृत्यु होगी या सूखा पड़ेगा, जिस से खेत परती पड़ा रहेगा |

घाघ की कहावतें-2




चैते गुड़ बैसाखे तेल |
जेठ क पंथ असाढ़ क बेल ||
सावन साग न भादों दही |
कार करेला कातिक माहि ||
अगहन जीरा पूसे धना |
माघे मिसरी फागुन चना ||

चैत में गुड़, बैसाख में तेल, जेठ में राई,आसाढ़ में बेल,सावन में साग, भादों में दही, कुआर में करेला. कार्तिक में मट्ठा, अगहन में जीरा, पूस में धनिया, माघ में मिसरी और फागुन में चना-हानिकारक हैं |

परहथ बनिज संदेसे खेती |
बिन बार देखे ब्याहे बेटी ||
द्वार पराये गाड़े थाती |
ये चारों मिली पीटैं छाती ||

दुसरे के भरोसे व्यापार करने वाला, संदेसा द्वारा खेती करने वाला, बिना वर देखे बेटी की शादी करने वाला और दुसरे के दरवाजे के सामने धरोहर गाड़ने वाला, ये चारों छाती पीट-पीट कर रोते हैं |

बुधवार, 15 मई 2013

भड्डरी की कहावतें-1



कातिक सूद एकादसी,
  बादल बिजुली होय |
तो असाढ़ में भड्डरी,
  बरखा चोखी होए ||

कार्तिक शुक्ल एकादशी को यदि बादल हों और बिजली चमके, तो भड्डरी कहते हैं कि आषाढ़ में निश्चय वर्षा होगी |


सूरज तेज सुतेज,
  आड़ बोले अन्याली |
यदि माटी गल जाए,
  पवन फिर बैठे छाली ||
कीड़ी मेले इंड,
  छिड़ी रेट में नहावे |
कांसी कामन दौड़,
  आभलीलो रंग आवे ||
देब्रो डहक बाड़ा चढ़े,
  विसहर चढ़ बैठे बड़ाँ|
पांडिया जोतिस झूठा पड़ें,
  धन बरसैं इतर गुणाँ||

यदि धुप के तेजी बढ़ जाए, बत्तख चिल्लाने लगें, घी पिघल जाए, बकरी हवा के रुख पर पीठ करके बैठे, चींटियाँ अंडे लेकर चलें, गोरैया धुल में नहाए, कांसे का रंग फीका पद जाए, आकाश का रंग गहरा नीला हो जाए, मेढक काँटों की बाड़ में घुस जाएँ और सांप वृक्ष के ऊपर चढ़ कर बैठें, तो घनी वर्षा होगी | ज्योतिष का कथन झूठा हो सकता है, पर ये लक्षण मिथ्या नहीं हो सकते |

घाघ की कहावतें-1


बनिय क सखरच ठकुर क हीन |
बदई क पूत व्याधि नहीं चीन ||
पंडित चुपचुप बेसवा मईल |
कहैं घाघ पांचो घर गईल ||

बनिए का लड़का शाहखर्च (अपव्ययी) हो; ठाकुर का लड़का तेजहीन हो; वैद्य का लड़का रोग ना पहचानता हो; पंडित चुप-चुप |(अल्पभाषी) हो; और वैश्या मैली हो; घाघ कहते हैं कि इन पांचो का घर नष्ट हुआ समझो |


बाछा बैल बहुरिया जोय |
ना घर रहें ना खेती होए ||

जिस गृहस्थ का बैल बछड़ा हो और स्त्री बहुरिया (नयी आयी ही, गृहस्थी के अनुभव से रहित बहु) हो, न उसकी गृहस्थी चल सकती है, ना खेती ही हो सकती है |


उधार काढि ब्यौहार चलावै
             छप्पर डारे तारो |
सारे के संग बहिनी पठ्वे
            तीनिउ का मुंह कारो ||

जो उधार ले कर क़र्ज़ देता है; जो छप्पर के घर में ताला लगाता है और जो साले के साथ बहन को भेजता है, घाघ कहते हैं, इन तीनों का मुंह काला होता है.