बुधवार, 15 मई 2013

घाघ की कहावतें-1


बनिय क सखरच ठकुर क हीन |
बदई क पूत व्याधि नहीं चीन ||
पंडित चुपचुप बेसवा मईल |
कहैं घाघ पांचो घर गईल ||

बनिए का लड़का शाहखर्च (अपव्ययी) हो; ठाकुर का लड़का तेजहीन हो; वैद्य का लड़का रोग ना पहचानता हो; पंडित चुप-चुप |(अल्पभाषी) हो; और वैश्या मैली हो; घाघ कहते हैं कि इन पांचो का घर नष्ट हुआ समझो |


बाछा बैल बहुरिया जोय |
ना घर रहें ना खेती होए ||

जिस गृहस्थ का बैल बछड़ा हो और स्त्री बहुरिया (नयी आयी ही, गृहस्थी के अनुभव से रहित बहु) हो, न उसकी गृहस्थी चल सकती है, ना खेती ही हो सकती है |


उधार काढि ब्यौहार चलावै
             छप्पर डारे तारो |
सारे के संग बहिनी पठ्वे
            तीनिउ का मुंह कारो ||

जो उधार ले कर क़र्ज़ देता है; जो छप्पर के घर में ताला लगाता है और जो साले के साथ बहन को भेजता है, घाघ कहते हैं, इन तीनों का मुंह काला होता है.

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